ज्योतिष को समझें

ब्रह्मांड का कण-कण गतिमान है। ब्रह्मांड एक व्यापक, बहुआयामी और वहुअर्थी शब्द है। पृथ्वी से आकाश तक समस्त क्षेत्र, जो हमें दृष्टिगत होता है वह तथा उसके अतिरिक्त वह क्षेत्र भी जो अस्तित्व में तो है, परंतु दूरी या अन्य किसी व्यवधान के कारण तत्काल दृष्टिगोचर नहीं होता, वह ब्रह्मांड कहलाता है, जैसे- पृथ्वी विश्व का एक अंग है, उसी तरह विश्व भी ब्रह्मांड का एक खण्ड है। नभोमंडल में छोटे-बड़े अनगिनत तारे हैं, उसी में से नौ विशालकाय तारों को ग्रहों की संज्ञा दी गई है। इसमें सात प्रमुख ग्रह हैं- रवि, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और राहु-केतु को छाया ग्रह की कल्पना की गई है। इसके सिवा सौर परिवार में अनगिनत उपग्रह तारे भी है। असंख्य ग्रह, नक्षत्र, पिंड, क्षुद्र पिंड आदि सभी अपनी-अपनी कक्षाओं में घुमते रहते हैं। इसके बावजूद वे परस्पर एक दूसरे से चुम्बकीय आकर्षण से बंधे हुए हैं। यह बंधन इतना अधिक व्यवस्थित है कि ब्रह्मांड के किसी सुदूर कोने में भी स्थित किसी कण विशेष कि मामूली सी हलचल पूरे ब्रह्मांड में हलचल मचा देते और समय चक्र की गति से चलते हैं। सूर्य की गति से फूल खिलते और मुरझाते हैं, पौधे अंकुरित होते हैं, जीवन पनपता है। चन्द्रमा कि गति से सागर के जल में ज्वार-भाटा आता है। जीवन की उत्पत्ति तथा विनाश इन दोनो छोरों के बीच की समस्त गतिविधियां सूर्य, चन्द्र व अन्य ग्रहों के गतिविधि से बंध कर चलती है। ज्योतिष विज्ञान ने ग्रह-नक्षत्रों की गति का संबंध मानव जीवन और इसके समस्त सरोकारों, जीवन की विभिन्न घटनाओं आदि से किस प्रकार जुड़ा है और वह क्या-क्या प्रभाव डालता है, इसका पता लगाने की विभिन्न विधियों का विकास किया है। जातक किस समय, किस स्थान पर जन्म लिया है, उसके अनुसार जातक की जन्म कुण्डली बनती है। उस स्थान विशेष पर जो लग्न जितने अंश पर हो उस विशेष समय के उदितावस्था लग्न को जातक का लग्न निर्धारित कर दिया जाता है। जो नक्षत्र जन्म समय में उदित हो, चन्द्र जिस नक्षत्र में हो, जिस चरण में हो तथा जो-जो ग्रह जिस राशि में जितने अंश पर हो उसको दर्ज कर दिया जाता है। इस प्रकार जातक की जन्म कुण्डली बन जाती है। जो बताती है कि जातक जिन परिस्थितियों में, जिस समाजिक आर्थिक महोल में और जिन-जिन ग्रह नक्षत्रों के भिन्न-भिन्न कोणों से पड़ने वाले प्रभावों के बीच पैदा हुआ है, उसके अंतर्गत उसके जीवन की, उसकी क्षमताओं की, उसके गुणावगुणों की क्या स्थिति है। यह प्रभाव स्थायी होते हैं और जीवन भर जातक पर काम करते हैं। ब्रह्मांड-ग्रह-नक्षत्र सभी गतिशील हैं। ग्रह, पिंडों की निरंतर बदलती स्थिति को ग्रह का गोचर कहा जाता है। जातक विशेष पर गोचर के प्रभाव उसकी जन्म कुण्डली से अलग नहीं होते, वे हमेशा उससे जुड़े रहते हैं। पालन-पोषण, शिक्षा संस्कार तथा परिस्थितियां आदि भी, यदि बारीकी से जांच पड़ताल करें तो जन्म कुण्डली से ही बंधकर चलती हैं। यदि जन्म कुण्डली मजबूत है तो विपरीत स्थितियों से भी जातक साहस के साथ निपटता हुआ उभर सकता है और अपने वांछित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है, लेकिन वह कब इन लक्ष्यों को प्राप्त करेगा, यह उसे ग्रह-गोचर से ही पता चलता है। ग्रहों की दशाएं अनुकूल हों तो उसे अवसर का लाभ उठाने का पूरा-पूरा मौका मिलता है। जन्म कुण्डली बनवाने में जन्म समय, तिथि, मास वर्ष और जन्म स्थान बहुत महत्व रखता है, कुछ ऐसा समय होता जैसे कि ग्रह-नक्षत्र आदि जब एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करता है, तब घटी/पल/विपल भी बहुत मायने रखता है, तभी तो हम देखते हैं कि अगर कोई बच्चा जुड़वा हो जन्म लेता तो भी कुछ अलग समय हो जाने के कारण कोई किसान तो कोई मंत्री तक भी बन जाता है। हर ग्रह महादशा में ग्रहों की अन्तर्दशा, प्रतन्तर्दशा एवं सूक्ष्म प्रत्यन्तर्दशा होती है। इसके अलावा योगनी दशा, कालचक्र दशा, अष्टोत्तरी दशा, षोडशोत्तरी आदि दशा भी होती है जो जातक पर विशेष मह्त्व रखते हैं। अधिक जानकारी तथा शुद्ध और सही जन्म पत्रिका बनवाने हेतु आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं।