पूजा-अनुष्ठान
पूजा, पाठ, जप, तप, ध्यान, अनुष्ठान आदि का सम्बन्ध हमारे मानवता से लेकर धर्म, संस्कृति और परमात्मा से होता है। पूजा-अनुष्ठान हमारे परमात्मा के सम्बन्ध को मजबूत बनाकर रखता है। पूजा-पाठ, देव-अनुष्ठान आदि हमारे विचार, सोच, सम्बन्ध तथा वर्ताव में मधुरता लाता है। पूजा श्रद्धा, भक्ति और विश्वासों पर आधारित है। पूजा हमारे जिज्ञासा को पूर्ण कर संतुष्टता को दर्शाती है। पूजा हमारे धीरज तथा मनोबल को बढ़ाती है। पूजा हमारे संस्कारों को मजबूत बनाती और एक अच्छे आदर्श विचारों को दर्शाती है। हमारे सनातन धर्म में पूजा-पाठ का इतिहास बहुत ही पुराना रहा है, सायद मानव जीवन का प्रारम्भिक काल। पूजा अनुष्ठानों की महिमा हमारे वेद-पुराण तथा कई ग्रंथों में देखने को मिलता है। माना जाता है की सतयुग में ध्यान-तप, त्रेता में यज्ञादि कर्म, द्वापर में मूर्ती पूजा और कलयुग में नाम संकीर्तन आदि का विस्तार हुआ लेकिन अपने शास्त्रों में कई ऐसे दृष्टांत है जो दर्शाता है कि युगों के प्रारम्भिक काल में ही यों कहे तो जीवन उत्पत्ति काल में ही पूजा-प्रार्थना सहित कई प्रकार के धर्मों को भी स्थापित किया गया। कई धर्मों में पूजा-पाठ की अनेक लम्बी विधियां हैं, कई धर्मों में सादे और बहुत ही सरल ढंग से पूजा की जाती है तो कई धर्मों में बड़े रूप या कहे तो काफी आडंबर के साथ पूजा-पाठ की जाती है। बहुत सारे लोग अपने धर्म को जानकर पूजा अर्चना करते हैं, कई लोग अपने बड़े बुजुर्गों तथा गुरु जनों के कहने पर पूजा करते है, कितने लोग अपनी समस्या को देखते हुए तो कितने लोग स्वेछा से पूजा-पाठ करते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार से हमारे जीवन काल में कई प्रकार के धार्मिक आयोजन-प्रायोजन का कार्य बहुत ही अच्छे ढंग से होता आया है और हो रहा है। आज भी हमारे धर्म, हमारे धार्मिक विचार केवल मानवता का ही नहीं वल्कि सारे जीव जगत के लिए कल्याणकारी साबित होता रहता है। पूजा तो एक सत्कार है जो एक दूसरे को प्रसन्न और प्रेरित करती है, चाहे वो कोई जीव हो या फिर नारायण। पूजा में अद्भुत शक्ति होती है, जिसे अनुभूति भी की जाती है तथा इसका फल भी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। पूजा केवल जन-जीव ही नहीं वल्कि परम शक्ति को भी हमसे जोड़ने का कार्य करती है। पूजा-पाठ हो या कोई विशेष अनुष्ठान श्रद्धा विश्वास के साथ-साथ ज्ञान का भी होना बहुत जरूरी होता है। ज्ञान रहित पूजा-पाठ कभी-कभी ऐसे मोड़ ले लेता जो केवल अंधविश्वास को ही बढ़ावा देता है और हम अपने कीमती वक्त को किसी लापरवाह की तरह खो देते हैं। पूजा, पाठ, अनुष्ठान जैसे कार्यों में विश्वास तो होनी ही चाहिए लेकिन ज्ञान रहित विश्वास उस दो पहिए गाड़ी की तरह है जो बिना सहारे चल तो सकती है पर बिना सहारे खड़ी नहीं रह सकती। मेरा कहने का मतलब यह है कि जब भी आप कोई विशेष कारण वस या विशेष रूप का पूजा अनुष्ठान यज्ञादि करें तो अपने गुरुजन, आचार्यों से परामर्श अवश्य लें तथा वैदिक शास्त्रों के द्वारा अपने कार्यों को सम्पन करावें। अधिक जानकारी या विशेष पूजा-अनुष्ठान करवाने हेतु आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं।