ज्योतिष
ज्योतिष एक प्राचीन विश्वसनीय विज्ञान है। वर्तमान समय में राशिचक्र के बारह भाग कर जन्मकुंडली के फलादेश की जो प्रणाली प्रचलित है इसका उल्लेख भार अथर्व ज्योतिष में बहुत पहले से ही इस पद्धति के मूल तत्व निहित हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग तरीके से भाग्य या भविष्य बताया जाता है। जैसे कि- वैदिक ज्योतिष, वैदिक कुंडली ज्योतिष, वैदिक नक्षत्र ज्योतिष, वैदिक हस्तरेखा ज्योतिष, वैदिक सामुद्रिक विद्या, वैदिक नंदी नाड़ी ज्योतिष, वैदिक अँगूठा शास्त्र, वैदिक अंक ज्योतिष, वैदिक चीनी ज्योतिष, वैदिक पंच पक्षी सिद्धान्त, वैदिक टैरो कार्ड, लाल किताब आदि। माना जाता है कि भारत में लगभग 150 से ज्यादा ज्योतिष विद्या प्रचलित है। प्रत्येक विद्या आपके भविष्य को बताने का दावा करती है। यह भी माना जाता है कि प्रत्येक विद्या भविष्य बताने में सक्षम है, लेकिन उक्त विद्या के जानकार कम ही मिलते हैं, जबकि भटकाने वाले ज्यादा। मन में सवाल यह उठता है कि आखिर किस विद्या से हम अपना भविष्य को जानें। शुभ समय या अशुभ समय का बोध ज्योतिष शास्त्र द्वारा सरलता पूर्वक किया जाता आ रहा है। ज्योतिष वेदों का एक मह्त्वपूर्ण अंग होने के कारण ही इसे वेदांग ज्योतिष कहा जाता है। वेद रूप पुरुष के मुख्य छ: अंगों में ज्योतिष शास्त्र दोनो नेत्र निरुक्त कहे गये हैं, इसलिए ज्योतिष शास्त्र वेद का मुख्य अंग माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में १२ महिने होते हैं। ६ रीतू, २ अयन, मकर से मिथुन की संक्रान्ति उत्तरायण एवं कर्क से धनु की संक्रान्ति तक दक्षिणायन होते हैं। १ महिने में कृष्ण और शुक्ल २ पक्ष होते हैं। जीस महिने में सूर्य की संक्रान्ति नहीं पड़ती उसे क्षयमास, अधिक मास, या मलमास कहते हैं। ज्योतिष में २७ योग तथा १५ तिथियाँ होती हैं। तिथियाँ ५ प्रकार की होती हैं-नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। कृष्ण पक्ष की तृतीया एवं दशमी के उत्तरार्द्ध में तथा सप्तमी एवं चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध में, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी एवं एकादशी के उत्तरार्द्ध में एवं अष्टमी तथा पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है। कुल २७ नक्षत्र होते हैं, अभिजित २८ वां माना जाता है। जो उत्तराषाषाढ़ा की अंतिम १५ और श्रवण की प्रारंभिक ४ घटियों से मिलकर बना है। नक्षत्र और नक्षत्रस्वामी इस प्रकार है- अश्विनी-अश्विनी कुमार, भरणी-काल, कृतिका-अग्नि, रोहनी ब्रह्मा, मृगशिरा-चंद्रमा, आद्रा-रूद्र, पुनर्वसु-आदित्य, पुष्य-बृहस्पति, श्लेषा-सर्प, मघा-पितर, पूर्वाफाल्गुनी-भग, उत्तराफाल्गुनी-अयर्मा, हस्त-सूर्य, चित्रा-विश्वकर्मा, स्वाति-पवन, विशाखा-शुकाग्नि, अनुराधा-मित्र, मूल-नैरीति, ज्येष्ठा-इंद्र, पूर्वाषाढा-जल, उत्तराषाढ़ा-विश्वेदेवा, श्रवण-विष्णु धनिष्ठा-वसु, पूर्वाभाद्रपद-अजेकपाद, उत्तरभाद्रपद- अहिर्बुधन्य, शतभिषा-वरूण, रेवती-पूषाऔरअभजित का ब्रह्मा हैं। धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती इन ५ नक्षत्रों को पंचक कहा जाता है। ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती, मघा, मूल, अश्विनी इन ६ नक्षत्रों को मूल संज्ञक वार कहा जाता है। २७ नक्षत्रों के कुल १०८ चरण होते हैं। १ नक्षत्र के ४ चरण और १ राशि के ९ चरण होते हैं। राशि और राशि स्वामी इस प्रकार है- मेष-वृश्चिक का मंगल, वृष-तुला का शुक्र, मिथुन-कन्या का बुध, कर्क का चंद्रमा, सिंह का सूर्य, धनु-मीन का गुरू और मकर-कुम्भ का शनि ग्रह स्वामी है। मेष-लाल, वृष-कर्पूर वर्ण, मिथुन-हरा, कर्क-गुलाबी, सिंह-पीला, कन्या-चित्रित, तुला-सफेद, वृश्चिक-काला, धनु-पीला, मकर-पिंगल, कुम्भ-विचित्र वर्ण, मीन-भूरा रंग का होता है। सूर्य मेष पर उच्च एवं तुला पर नीच, चंदमा वृष पर उच्च एवं वृश्चिक पर नीच, मंगल मकर पर उच्च एवं कर्क पर नीच, बुध कन्या पर उच्च एवं मीन पर नीच, गुरू कर्क पर उच्च एवं मकर पर नीच, शुक्र मीन पर उच्च एवं कन्या पर नीच, शनि तुला पर उच्च एवं मेष पर नीच, राहु मिथुन पर उच्च एवं धनु पर नीच और केतु धनु पर उच्च एवं मिथुन राशि पर नीच का होता है। जन्म कुण्डली में १२ भाव होते हैं- १ तनु, २ घन, ३ सहज, ४ सुहत, ५ पुत्र, ६ शत्रु, ७ भार्या, ८ आयु, ९ धर्म, १० कर्म, ११ आय, १२ व्यय का होता है। प्रथम भाव तनु को लग्न कहते हैं। लग्न में सूर्य, बुध और शुक्र एक राशि पर एक मास, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल तीन पक्ष, गुरू एक वर्ष, शनि ढाई वर्ष, एवं राहु-केतु डेढ़-डेढ़ वर्ष तक एक राशि पर रहता है। सभी ग्रह अपने से सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं और मंगल अपने से चौथे-आठवें, गुरु पाँचवें-नौवें, शनि तिसरे तथा दसमें स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। गुरू तथा शुक्र ब्राह्मण जाति के, मंगल सूर्य क्षत्रिय, बुध चंद्रमा वेश्य, तथा शनि राह व केतु शूद्र जाति के हैं। सूर्य और मंगल का रंग लाल, चंद्रमा शुक्र का सफेद, गुरू का पीला, बुध का हरा, शनि का काला और राहु केतु धूम रंग के हैं। चंद्र, बुध, गुरू तथा शुक्र शुभग्रह, मंगल, शनि तथा केतु पापग्रह एवं सूर्य तथा राहु क्रूर ग्रह हैं। जन्म पत्रिका में विंशोत्तरी महादशा कुल १२० वर्ष की होती है। जिसमें सूर्य-६, चंद्र-१०, मंगल-७, बुध-१७, गुरू-१६, शुक-२०, शनि-१९, राहु-१८, केतु-७, वर्ष का होता है। अधिक जानकारी तथा ज्योतिष परामर्श के लिए आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं ।