रत्न

रत्न शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- श्रेष्ठ । अतः रत्न शब्द सर्वत्र श्रेष्ठता का ही धोतक होता है, रत्न प्रायः दो प्रकार के होते हैं खनिज रत्न और जैविक रत्न । खनिज रत्न उन रत्नों को कहते है जो खानों से प्राप्त होते हैं । पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न रासायनिक द्रव्य विद्यमान रहते हैं । इन रसायनिक द्रव्यों में विभिन्न तापक्रम के द्वारा विभिन्न प्रकार की रासायनिक क्रियायें निरन्तर होती रहती हैं । इसी के परिणाम स्वरूप पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न रत्नों का जन्म होता है । हीरा, माणिक, पन्ना, नीलम, पुखराज, गोमेद, लहसुनिया खनिज रत्न हैं । इनकी उत्पत्ति और प्राप्ति खानों से होने के कारण ही इन्हें खनिज रत्न कहा जाता है । रत्नों की दुसरी श्रेणी में जैविक रत्न आते हैं । जैविक का अर्थ है, जीव के द्वारा उत्पन्न किया गया । इस श्रेणी में दो ही रत्न आते हैं- मूँगा और मोती । इनकी रचना विभिन्न समुद्री कीटों द्वारा समुद्रों के गर्भ में की जाती है । हमारे प्राचीन शास्त्रों के अनुसार रत्न और उपरत्नों की कुल संख्या चौरासी मानी गयी है । इनमें माणिक, मोती, मूँगा, हीरा, पन्ना, नीलम, पुखराज, गोमेद और लहसुनिया इन नौ रत्नों को नवरत्न माना गया है और शेष को उपरत्न माना गया है, किन्तु इनके अतिरिक्त कुछ अन्य उपरत्न भी होते हैं । यहाँ हम इस विषय में अधिक विस्तार में न जाकर केवल इतना ही कहना पर्याप्त समझते हैं कि रत्नों का प्रयोग प्रायः दो प्रकार से किया जाता है । एक ओर तो लोग शौकिया तौर पर आभूषणों में जड़वाकर शोभा वृद्धि के लिये धारण करते हैं । दुसरी ओर इसके साथ ही ज्योतिषीय दृष्टि से भी इन रत्नो-उपरत्नों का विशेष महत्व है । हमारे प्राचीन शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि सभी रत्न, उपरत्न तथा रूद्राक्षादि में एक प्रकार की देवी शक्ति निहित होती है । जिसके आधार पर ये धारक की ग्रह-बाधाओं को दूर करके उसके जीवन में सुख तथा शान्ति की स्थापना करते हैं । ज्योतिष शास्त्रों के हिसाब से रत्न और उपरत्न, व्यक्ति की ग्रह बाधाओं को दुर करने में समर्थ होते हैं हमारा प्राचीन आयुर्वेद शास्त्र भी इस बात से सहमति प्रगट करता है कि रत्न रूद्राक्ष आदि का प्रयोग मानव जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है । आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार विभिन्न रत्नों की भस्म व पिष्टी का उपयोग विभिन्न बीमारियों में किया जाता है । आयुर्वेद शास्त्र के एक बहुत बड़े विद्वान का कथन है कि मानव शरीर पर यंत्र, औषधि तथा रत्न और रूद्राक्ष का समान रूप से प्रभाव पड़ता । आज के तेज युग में प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी कारण से दुःखी है, कोई निर्धनता से दुःखी है, कोई शारीरिक रोगों से पीड़ित है, किसी को मानसिक परेशानी है तो कोई मेहनत का फल नहीं मिलने से दुःखी है । हर मनुष्य तेजी से बढते हुये उन्नति के शिखर पर पहुँच जाना चाहता है । इसके लिये जरूरी है कि परिश्रम के साथ मन्त्र-तन्त्र, जप-यज्ञ, टोटके, यन्त्र तथा रत्नों का प्रयोग नियम से किया जाए । कोई भी कार्य हो, नियम बहुत मैने रखता है, नियम की तहत कोई कार्य सुगमता से हो जाती है । दुध पी लेने से दही-घी- मक्खन-छेन्ना-पनीर आदि का स्वाद नहीं लगता लेकिन नियम के तहत अलग-अलग करके हम अलग-अलग स्वाद ले पाते हैं । रत्नो को कई कारणों, कई तथ्यों के आधार पर पहना जाता है रत्नों को लग्न राशि, चन्द्र राशि, महा दशा, अंतर दशा, क्रूर ग्रह, मारक ग्रह एवं जरूरतों को देखते हुए धारण करना अधिक लाभकारी होता है । जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रहों की निर्बलता को दुर करने के लिए भी रत्नों का उपयोग किया जाता है तथा उसमें उपयुक्त रत्नों का चुनाव तथा रत्नों की उत्तमता अपना महत्व रखती है । ठीक इसी प्रकार किसी भी रत्न के धारण करने का समय भी अपना विशेष स्थान रखता है । उचित समय में किया गया कोई भी कार्य सिद्ध होता है । इसी उचित समय को हम मुहूर्त भी कहते हैं । ऐसा शास्त्रों में लिखा गया है । इसलिए रत्न धारण करते समय हमें निर्धारित दिवस, निर्धारित नक्षत्र तथा शुक्ल पक्ष का चुनाव करना चाहिए । निर्धारित धातु व अंगुली होनी चाहिए एवं हमारे अंगुली से रत्न स्पर्श होनी चाहिए । किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करते समय हमारे शास्त्रों में पूजा पाठ इत्यादि तथा अपने इष्टदेव का ध्यान करना बताया गया है इस बात को ध्यान में रखकर हमें निर्धारित पूजा भी करनी चाहिए । रत्न जड़ित अंगूठी धारण करने से पहले गाय का दुध एवं गंगाजल से धो लेना चाहिए । इसके पश्चात स्वच्छ मन से प्रभु की उपासना करते हुए तथा निर्धारित मंत्रों का जाप संभव हो तो १०८ बार करते हुए रत्न जड़ित अंगूठी को धारण करना चाहिए और अपने घर के देवी-देवता सहित परिवार में अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए ताकि वे भी आपके मंगल भविष्य तथा आपकी इच्छाओं की पूर्ति हेतु कामना करें । यदि उचित रूप से इन रत्नों का उपयोग किया जाय तो रत्न वास्तव में उचित फल प्रदान करने में सहायक सिद्ध होते है । उत्तम रत्न अपना विशेष महत्व रखती है । आप विशेष जानकारी तथा सही रत्न मंगबाने के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।