मुल शान्ति पूजा अनुष्ठान

मुल नक्षत्र में- श्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, रेवती और अश्विनी को माना जाता है।

गण्ड मूल- (१) अश्लेषा, (२) मघा, (३) ज्येष्ठा, (४) मूल ये ४ नक्षत्र गण्ड मूल कहलाते हैं। मलिन मूल- (१) अश्विनी, (२) रेवती ये दो नक्षत्र मलिन मूल अर्थात मूल के मैल कहे जाते हैं। अभुक्त मूल ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त की ४ घड़ी तथा मूल नक्षत्र के आदि की ४ घड़ी को अभुक्त मूल कहते हैं। कुछ महर्षियों ने ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त वाली आधी तथा मूल नक्षत्र के आदि की आधी घड़ी को अभुक्त मूल कहते हैं। एक ऋषि के अनुसार ज्येष्ठा की अन्तिम १ घड़ी तथा मूल के आदि की १ घड़ी को अभुक्त मूल कहा गया है। इस प्रकार अभुक्त मूल समय के सम्बन्ध में कई मत हैं। मूल नक्षत्र में जन्म होने से मूल का विचार किया जाता है। मूल का प्रभाव दो प्रकार का होता है अच्छे भी बुरे भी। मूल का प्रभाव कभी हमारे शरीर पर, कभी हमारे कार्य शैली पर, कभी हमारे सोच-व्यव्हार पर, कभी माता-पिता पर तो कभी सगे-सम्बन्धियों पर परता है। मूल का प्रभाव प्रत्येक मूल वार नक्षत्र चरण के हिसाब से देखा जाता है। एक अच्छे ज्योतिष आचार्यों से अपने जन्म कुंडली को विश्लेषण कर गण्ड मूल के विषय का जानकारी अवश्य ले लें तथा विधि विधानों के अनुसार मूल नक्षत्र की शान्ति अवश्य करवा लें। विशेष जानकारी के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।

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