वास्तु
भारतीय गृह वास्तुशास्त्र सूर्य पर आधारित माना जाता है। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा हर दिशा में हर जगह प्राप्त होती है। उस उर्जा के द्वारा ही हमारे शरीर, मन एवं मस्तिष्क का संचालन होता है। वास्तुशास्त्र का मुख्य सिद्धान्त है कि सूर्य किस समय कितनी ऊर्जा किस स्थान पर प्रदान कर रहा है, हमको किस प्रकार की आवश्यकता है, उस तरह की ऊर्जा प्राप्त हो रही है कि नहीं। जैसे कि सूर्य पूरब की दिशा में उदय होता है अतएव प्रातः कालीन किरणें किस प्रकार से भवन पर अपना प्रभाव डाल रही हैं। एक शास्त्रीय पौराणिक कथा के अनुसार एक समय भगवान् शंकर ने जिस समय अन्धकासुर का वध किये, उस समय उनके ललाट से पृथ्वी पर पसीने की बूँदें गिरी। उनसे एक विकराल मुखवाला प्राणी उत्पन्न हुआ। उस प्राणी ने पृथ्वी पर गिरे हुए अन्धकों के रक्त का पान कर लिया। फिर भी जब वह तृप्त नहीं हुआ, तब वह भगवान् शंकर के सम्मुख घोर तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शंकर ने उससे कहा कि तुम्हारी जो कामना हो, वह वर माँग लो। उसने कहा कि मैं तीनों लोकों को ग्रसने में समर्थ होना चाहता हूँ। वर प्राप्त करने के बाद वह अपने विशाल शरीर से तीनों लोकों को अवरुद्ध करता हुआ पृथ्वी पर आ गिरा। तब भयभीत देवताओं ने उसको अधोमुख करके उसे वहीं स्तम्भित कर दिया। जिस देवता ने उसको जहाँ दबा रखा था, वह देवता उसके उसी अंग पर निवास करने लगे। सभी देवताओं के निवास करने के कारण वह 'वास्तु' नाम से प्रसिद्ध हुआ। मैं आपको बतादूँ कि भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित्, भगवान् शंकर, इन्द्र, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश्वर, शौनक, गर्ग, भगवान् वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति— ये अठारह वास्तुशास्त्र के उपदेष्टा माने जाते हैं। मनुष्य जब अपने निवास के लिये ईंट, पत्थर आदि से गृह का निर्माण करता है तो वास्तुशास्त्र के नियम लागू हो जाते हैं। तारबंदी आदि के भीतर, जिसमें से वायु आर-पार होती हो वहां वास्तुशास्त्र के नियम लागू नहीं होते। आजकल कहीं कहीं देखने में आता है कि घर पूर्ण रूप से वास्तु के सिद्धान्तों को मानते हुए बनाया गया है, फिर भी उस घर में तकलीफें दिखाई पड़ती है। और कहीं कहीं देखने में आता है कि घर वास्तु के सिद्धान्तों के विपरीत है, फिर भी घर में सुख ही सुख दिखाई परता है। इसका कारण यह भी हो सकता कि कही न कहीं कोई ऐसी वस्तु पड़ी है जो कि सकारात्मक ऊर्जा को नकारात्मक बना रही है या नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर दे रही है। इसलिए सिर्फ वास्तु के अनुसार शयन कक्ष, रसोई घर, पूजा घर इत्यादि बना लेने से ही पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता, इसके लिए घर की हर वस्तुएँ फर्नीचर, रंग इत्यादि हर पहलू पर ध्यान देना होगा। गृह प्रवेश के बाद वास्तु पूर्ण रूप से सेट हो जाता है। गृह प्रवेस के बाद घर के किसी भी स्थान को विशेष तोर-फोर या छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, वास्तु के शरीर पर कभी भी वार नहीं करना चाहिए। इन दोषों को दूर करने के लिए वास्तुविद् की सलाह लेनी चाहिए कि किस प्रकार से तोड़ फोड़ किए बिना नकारात्मक ऊर्जा (Negative Power) को सकारात्मक ऊर्जा (Positive Power) में बदल सकें। अधिक जानकारी के लिए आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं।