मंत्र

मंत्र शब्द का अर्थ असीमित है।

1. वैदिक ऋचाओं के प्रत्येक छन्द भी मन्त्र कहे जाते हैं तथा देवी देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन के निमित्त निश्चित किए गये शब्द समूहों को भी मन्त्र कहा जाता है।

2. तन्त्र शास्त्र में मन्त्र उसे कहते हैं- जो शब्द पद या समूह जिस-जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है।

3. अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मन्त्र कहते हैं।

4. देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्ट देव की कृपा को मंत्र कहते हैं।

5. दिव्य शक्तियों की कृपा को प्राप्त करने में उपयोगी शब्द को मंत्र कहते हैं।

6. विश्व में व्याप्त गुप्त शक्ति को जाग्रत करने अपने अनुकूल बनाने वाले ज्ञान को मंत्र कहते हैं।

7. गुप्त शक्ति को विकसित करने वाले ज्ञान को मन्त्र कहते हैं।

8. निश्चित वर्ण समूह द्वारा उच्चारित ध्वनि को मन्त्र कहते हैं।

9. मंत्र महोदधि के हिसाब से बस इतना जानना है कि मंत्र शक्ति के बिना न ब्रह्माण्ड बनता, न बना रहता है। ऐसे परम शक्ति को मन्त्र कहते हैं।

इस प्रकार से मन्त्र के अनेकों अर्थ हैं।

इन शास्त्रों की दो श्रेणियां हैं- निगम व आगम और दोनों ही विश्व का निरूपण करते हैं। इस विश्व के प्रत्येक पदार्थ के लिए पृथक-पृथक क्षुद्रविद्याएं हैं और ये समस्त क्षुद्रविद्याएं मिलकर महा विद्याएं कहलाती हैं। महाविद्या आगम शास्त्र में प्रसिद्ध है, जबकि निगम शास्त्र में इसे विराड् विद्या कहा गया है। तंत्र मंत्र और यंत्र तीनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है, पर जब इन तीनों का संगम होता है तो प्रभावोत्पादकता और बढ़ जाती है। प्राचीन काल से ही तंत्र, मंत्र और यंत्र की साधनाऐं हमारे यहां व्यापक रूप से होता आया है। गुरु गोरख नाथ भी मंत्र-तंत्र में निपुन थे, लंकेश्वर रावन ने भी भगवान शिव से इस विद्या को प्राप्त कर लक्ष्मन हनुमान सहित कितने देवताओं को चकित भ्रमीत कर दिया था। रावण को इस महाविद्या का गलत प्रयोग करते देख भगवान शिव ने इस विद्या को युगों-युगों तक गुप्त ही रखा, फिर भगवान दत्तात्रय की प्रार्थाना से पुनः प्रगट किया। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि ब्रह्मा जी ने मंत्रों की, विष्णु जी ने यंत्रों की ओर शिव जी ने तंत्रों को जन्म दिया है। मंत्रों की शक्ति अपार है जिसको प्रतक्ष रूप से देखा गया और देखा जाता है। मंत्र की शक्ति तो आदि अनंत है। मेरा आपसे कहने का तात्यपर्य यह है कि अपने श्रद्धा विश्वास के साथ अगर हम नित्य नेम मंत्रों के साथ जीवन पथ पर चलते रहें तो निश्चय ही हर एक मंजिल को सहजता से प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ कुछ ऐसे चुने हुए मन्त्रों का उल्लेख है जो कल्यानकारी है निश्चित रूप से हमारे कार्यों को सिद्ध करने में समर्थ है। आप मंत्रों के सहारे मंजिल की ओर बढ़ते चलें आपका विश्वास एवं मंत्र जरूर एक अच्छे सहायक के रूप में उभरेगा। आप अपने अराध्य देव-देवी के पास बैठ कर सच्चे भावना के साथ में अपनी मनोकामना को जाहिर करते हुए यथा सम्भव मंत्र का जाप करें। आपका सच्चा भावना ही फल दिलाने में समर्थ होंगें ।

 

1. आरोग्य और सौभाग्यकी प्राप्तिके लिये मंत्र:-

ॐ देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

2. बुद्धि प्राप्ति लिये मंत्र:-

ॐ क्लीं बुद्धिम् देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे, मूढ़त्वं हर में देव त्राहि माम् शरणागतम् क्ली ॐ ।।

3. धन प्राप्ति लिये मंत्र:-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये नमः ।।

4. बाधा शांति के लिए मंत्र:-

ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि । एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वरिविनासनम् ।।

5. लड़कों के शीर्घ विवाह लिए मंत्र:-

ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥

6. लड़कियों के शीर्घ विवाह लिए मंत्र:-

ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नंदगोप सुतं देवि पतिं मे कुरुते नमः ॥

7. संतान प्राप्ति लिए मंत्र:-

ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।।

8. संकट नाश लिए मंत्र:-

काज किये बड देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो । कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसों नहिं जात है टारो ।। बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो ।। को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ।।

9. ऋण मुक्ति लिए मंत्र:-

ॐ ऋण-मुक्तेश्वर महादेवाय नम: ।।

10. रोग नाश के लिए मंत्र:-

ॐ रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।

11. सभी प्रकार के कल्याण लिए मंत्र:-

ॐ सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

12. श्री महामृत्युंजय मंत्र:-

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ।।

13.  गायत्री मंत्र:-

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

14. नवग्रह गायत्री मंत्र:-

सूर्य गायत्री मंत्र :- ॐ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात ।

चन्द्र गायत्री मंत्र :- ॐ अमृताङ्गाय विद्महे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमः प्रचोदयात ।

भौम गायत्री मंत्र :- ॐ अंगारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात ।

बुध गायत्री मंत्र :- ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो सौम्यः प्रचोदयात । 

गुरू गायत्री मंत्र :- ॐ आंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात ।

शुक गायत्री मंत्र :- ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुकः प्रचोदयात ।

शनि गायत्री मंत्र :- ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात ।

राहु गायत्री मंत्र :- ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात ।

केतु गायत्री मंत्र :- ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतुः प्रचोदयात ।

15. नवग्रह मंत्र:-

सूर्य की अनुकूलता हेतु:- मंत्र

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः । जप संख्या २८,००० हजार ।

चन्द्रमा की अनुकूलता हेतु:- मंत्र

ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः । जप संख्या ४४,००० हजार ।

मंगल की अनुकूलता हेतु:- मंत्र

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः । जप संख्या ४०,००० हजार ।

बुध की अनुकूलता हेतु:- मंत्र-

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः । जप संख्या ३६,००० हजार ।

गुरू की अनुकूलता हेतु:- मंत्र

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: बृहस्पतये नमः । जप संख्या ७६,००० हजार ।

शुक्र की अनुकूलता हेतु:- मंत्र

ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः । जप संख्या ६४,००० हजार ।

शनि की अनुकूलता हेतु:- मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः । जप संख्या ९२,००० हजार ।

राहु की अनुकूलता हेतु:- मंत्र -

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः । जप संख्या ७२,००० हजार ।

केतु की अनुकूलता हेतु:- मंत्र -

ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः । जप संख्या ६८,००० हजार ।

16.  योगिनी मंत्र:-

१ -  मंगला मंत्र:- ॐ ह्रीं मंगले मंगलायै स्वाहाः । जप संख्या ८,००० हजार ।

२ -  पिंगला मंत्रः- ॐ ग्लों पिंगलेबैरिकारिणि प्रसीद फट् स्वाहाः । जप संख्या १६,००० हजार ।

३ -  धान्या मंत्रः- ॐ श्रीं धनदे धान्यै स्वाहाः । जप संख्या २४,००० हजार ।

४ -  भ्रामरी मंत्रः- ॐ भ्रामरि जगतामधीश्वरि भ्रामरि क्लीं स्वाहाः । जप संख्या ३२,००० हजार ।

५ -  भद्रिका मंत्र:- ॐ भद्रिके भद्रंदेहिअभद्रं नाशय स्वाहाः । जप संख्या ४०,००० हजार ।

६ -  उलका मंत्रः- ॐ उल्के मम रोगं नाशय जृंभय स्वाहाः । जप संख्या ४८,००० हजार ।

७ -  सिद्धा मंत्रः- ॐ ह्रीं सिद्धे मे सर्वमानसं साधाय स्वाहाः । जप संख्या ५६,००० हजार ।

८ -  संकटा मंत्रः- ॐ ह्रीं संकटे मम रोगं नाशय स्वाहाः । जप संख्या ६४,००० हजार ।

नोट- कुछ विशेष मंत्र उपाय को शुभ समयानुसार ही करना चाहिए । अगर आप खुद नहीं कर पाते हैं, तो किसी अच्छे आचार्य ब्राह्मनों से भी करवा सकते हैं। जीतना मंत्र जाप हो उसका दशांश हवन आहुती होना अनिवार्य होता है। गर दशांश आहुती न दे सके तो दशांश मंत्र को चौगुना करके जप कर सकते हैं, जो आपको आहुती देने का फल प्रदान करेगा। मन्त्र: तथा मन्त्र: जाप विषय की पूरी जानकारी और किसी भी तरह के मन्त्र: जाप अनुष्ठान हेतु, आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं।